“जिदंगी की सार्थकता खुद के
लिये जीने में नहीं वरन सामाजिक मूल्यों की रक्षा व पीड़ितों के आंसूओं को पोछने
में है।“
उत्तराखण्ड की प्राकृतिक आपदा में ना जाने कितने ब्रह्मलीन हो गये, ना
जाने कितने अपनी जिंदगी से लड़ रहे हैं, ना जाने कितने अनाथ हो गये हैं। ऐसे में
हमारा मौन अच्छा नहीं, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना अच्छा नहीं। जो बन पड़े वो जरुर कीजिये
वक्त आपका आभारी रहेगा॰॰ ॐ शांती
समग्र प्रयास ही इस विपदा से प्रभावित लोगों को सही मायने में राहत दे सकते हैं।
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